Saturday, 25 May 2013
Thursday, 14 March 2013
अजनबी इस शहर में आज मैं गुमनाम सा खड़ा हूँ......!!!
Me and My Friends in Mritunjay Dubey's Birthday party at 06 march 2013 |
अजनबी इस शहर में आज मैं गुमनाम सा खड़ा हूँ......!!!
अश्कों को रोक ले दिल का राज़ खोल
देंगे ....
तेरे कहने से पहले ये सबको आज बोल
देगे .....
जमाना मानता है मुझे गुनहगार जाने
क्यूँ.....
बता मुझसे ज्यादा कौन तेरा तलबगार
था ....
कैसा ये रिश्ता था जिसको अब तक
निभा रहा हूँ ....
कभी बरसों जो पीछे छूट
गया उसको बुला रहा हूँ ....
जिन्दगी को किस तरह देखूं मैं नाकाम
सा खड़ा हूँ.....
अजनबी इस शहर में आज मैं गुमनाम
सा खड़ा हूँ......!!!
आपका मित्र शिवराम वरुण काम्पिल्य
Sunday, 10 February 2013
मेरी आंखों मे जरा इंक़लाब रहने दे........
मेरी आंखों मे जरा इंक़लाब रहने दे
किसी जगह के लिए इंतख़ाब रहने दे
मैं एक सवाल हूँ मेरा जवाब रहने दे।
मैं जानता हूँ तू लिबास पसंद है लेकिन
मैं बेनक़ाब सही, बेनक़ाब रहने दे।
मैं बाग़ी नहीं पर उसके समझने के लिए
मेरी आंखों मे जरा इंक़लाब रहने दे।
तमाम उम्र गुनहगार जिया हूँ या रब
मेरे हक़ में मगर एक सवाब रहने दे।
तमाम शहर मेरे ख़्वाब तले सोया है
मत बेदार कर, तू ज़ेर-ए-ख़्वाब रहने दे।
आपका मित्र
शिवराम सिंह काम्पिल्य फर्रुखाबाद
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ
मेरा अपना ही क्रंदन है और अकेला मैं हूँ
मेरा अपना ही क्रंदन है और अकेला मैं हूँ
मन का गहरा खालीपन है और अकेला मैं हूँ
जैसे कोई निर्जन वन है और अकेला मैं हूँ
जिसको सुनकर रातों को मैं अक्सर जाग गया हूँ
मेरा अपना ही क्रंदन है और अकेला मैं हूँ
मेरे घर के आस पास ही रहना चाँद सितारों
मेरी नींदों से अनबन है और अकेला मैं हूँ
पक्की करके रक्खूं मैं मन की कच्ची दीवारें
मेरी आँखों में सावन है और अकेला मैं हूँ
कुछ आधी पूरी कवितायें कुछ यादें कुछ सपने
मेरे घर में कितना धन है और अकेला मैं हूँ
जीवन के कितने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलें हैं
समय बचा अब कितना कम है और अकेला मैं हूँ
कभी कभी लगता है कोई करे प्यार की बातें
'शिवराम ' बड़ा नीरस जीवन है और अकेला मैं हूँ
आपका मित्र
शिवराम सिंह काम्पिल्य फर्रुखाबाद
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ
दोस्ती का पैगाम..............
दोस्ती का पैगाम
दोस्त तुम यादों में हो, वादों में हो, संवादों में हो
गीतों में हो, ग़ज़लों में हो, ख़्वाबों में हो
चुप्पी में हो, खामोशी में हो, तन्हाई में हो
महफिल में हो, कहकहो में हो और बेवफाई में भी हो
तुम उन चिट्ठियों में हो जो तुम्हें दे न सका
तुम उस टीस में भी हो जो तुम देते रहे
और मैं उस मीठे दर्द को अल्फाजों में बदलता रहा
तुम उस खुशी में भी हो जो तुमने मुझे अनजाने में दी
...इतना कुछ होने के बाद तुम अगर मुझसे रूठ भी जाओ
तो अलग कैसे हो पावोगे?
नाराज होकर फेसबुक से अन्फ्रेंड कर दोगे
डायरी से फाड़ दोगे, ग्रीटिंग्स कार्ड जला दोगे
लेकिन मेरी यादें?
जानते हो...
यादें और चुप्पियाँ एक-दूसरे की डायरेक्टली प्रपोशनल होती हैं
चुप्पियाँ, यादों के समन्दर में डूबोती चली जाती हैं
कहते हैं... खामोशी और बोलती है... प्रतिध्वनि भी करती है
पगला देती है आदमी को
इसलिए शब्दों का और आँसुओं का बाहर निकलना बहुत जरूरी है
मैं बाहर निकल आया हूँ, तुम भी बाहर आ जाओ
अपने ईगो के खोल से
मैं भी सॉरी बोलता हूँ, तुम भी बोलो
...बोलो, तुम्हारा भी कद ऊँचा हो जाएगा
अब छोड़ो भी इन बातों को, गलती किसी की भी हो
पर हत्या तो दोस्ती की हुई न?
...और हमारी दोस्ती इतने कमजोर धागों से नहीं बँधी है
कि एवीं टूट जाय
न दोस्ती को एवीं टूटने देंगे... न जिन्दगी को
क्योंकि दोनों अनमोल हैं।
आपका मित्र
शिवराम सिंह काम्पिल्य फर्रुखाबाद
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ
’पापा याद बहुत आते हो’ कुछ ऐसा भी मुझे कहो
’पापा याद बहुत आते हो’ कुछ ऐसा भी मुझे कहो
माँ को गले लगाते हो, कुछ पल मेरे भी पास रहो !
’पापा याद बहुत आते हो’ कुछ ऐसा भी मुझे कहो !
मैनेँ भी मन मे जज़्बातोँ के तूफान समेटे हैँ,
ज़ाहिर नही किया, न सोचो पापा के दिल मेँ प्यार न हो!
थी मेरी ये ज़िम्मेदारी घर मे कोई मायूस न हो,
मैँ सारी तकलीफेँ झेलूँ और तुम सब महफूज़ रहो,
सारी खुशियाँ तुम्हेँ दे सकूँ, इस कोशिश मे लगा रहा,
मेरे बचपन मेँ थी जो कमियाँ, वो तुमको महसूस न हो!
हैँ समाज का नियम भी ऐसा पिता सदा गम्भीर रहे,
मन मे भाव छुपे हो लाखोँ, आँखो से न नीर बहे!
करे बात भी रुखी-सूखी, बोले बस बोल हिदायत के,
दिल मे प्यार है माँ जैसा ही, किंतु अलग तस्वीर रहे!
भूली नही मुझे हैँ अब तक, तुतलाती मीठी बोली,
पल-पल बढते हर पल मे, जो यादोँ की मिश्री घोली,
कन्धोँ पे वो बैठ के जलता रावण देख के खुश होना,
होली और दीवाली पर तुम बच्चोँ की अल्हड टोली!
माँ से हाथ-खर्च मांगना, मुझको देख सहम जाना,
और जो डाँटू ज़रा कभी, तो भाव नयन मे थम जाना,
बढते कदम लडकपन को कुछ मेरे मन की आशंका,
पर विश्वास तुम्हारा देख मन का दूर वहम जाना!
कॉलेज के अंतिम उत्सव मेँ मेरा शामिल न हो पाना,
ट्रेन हुई आँखो से ओझल, पर हाथ देर तक फहराना,
दूर गये तुम अब, तो इन यादोँ से दिल बहलाता हूँ,
तारीखेँ ही देखता हूँ बस, कब होगा अब घर आना!
अब के जब तुम घर आओगे, प्यार मेरा दिखलाऊंगा,
माँ की तरह ही ममतामयी हूँ, तुमको ये बतलाऊंगा,
आकर फिर तुम चले गये, बस बात वही दो-चार हुई,
पिता का पद कुछ ऐसा ही हैँ फिर खुद को समझाऊंगा!
________________________________
छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये
छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये |
लबो पे हँसी, जुबाँ पर ताले रखिये,
छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये
दुनिया में रिश्तों का सच जो भी हो,
जिन्दा रहने के लिए कुछ भ्रम पाले रखिये
बेकाबू न हो जाये ये अंतर्मन का शोर ,
खुद को यूँ भी न ख़ामोशी के हवाले रखिये
बंजारा हो चला दिल, तलब-ए-मुश्कबू में
लाख बेडियाँ चाहे इस पर डाले रखिये
ये नजरिये का झूठ और दिल के वहम
इश्क सफ़र-ए-तीरगी है नजर के उजाले रखिये
मौसम आता होगा एक नयी तहरीर लिए,
समेटकर पतझर कि अब ये रिसाले रखिये
कभी समझो शहर के परिंदों की उदासी
घर के एक छीके में कुछ निवाले रखिये
तुमने सीखा ही नहीं जीने का अदब शायद,
साथ अपने वो बुजुर्गो कि मिसालें रखिये
आपका मित्र
शिवराम सिंह काम्पिल्य फर्रुखाबाद
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ
गज़ल बेबसी की हम नई तस्वीर हैं , हम तूफानों में फंसी तकदीर हैं गुलशनों को फूंकते हैं नौजवां, मालियों के सूखते अब नीर हैं बन गया मैं एक दिल टूटा हुआ, लोग मुझको जोडते हर पीर हैं एक था घर कई घरों में बंट गया, बीबियाँ घर की गज़ब शमशीर हैं रांझे को चीलें उठा के ले गईं , काफिरों संग घूमती अब हीर हैं अब कहाँ मिलते फंसाने प्रीत के, हर तरफ अब फत्ते ईर बीर हैं |
आपका मित्र
शिवराम सिंह काम्पिल्य फर्रुखाबाद
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ
रोज़ दलाली करने जाता दफ्तर कौन...
रोज़ दलाली करने जाता दफ्तर कौन...
दे जाता है इन शामों को सागर कौन...
चुपके से आया आंखों से बाहर कौन?
भूख न होती, प्यास न लगती इंसा को
रोज़ दलाली करने जाता दफ्तर कौन?
उम्र निकल गई कुछ कहने की कसक लिए,
कर देती है जाने मुझ पर जंतर कौन?
संसद में फिर गाली-कुर्सी खूब चली,
होड़ सभी में, है नालायक बढ़कर कौन?
रिश्तों के सब पेंच सुलझ गए उलझन में,
कौन निहारे सिलवट, झाड़े बिस्तर कौन...
सब कहते हैं, अच्छा लगता है लेकिन,
मुझको पहचाने है मुझसे बेहतर कौन?
मां रहती है मीलों मुझसे दूर मगर,
ख्वाबों में बहलाए आकर अक्सर कौन..
जीवन का इक रटा-रटाया रस्ता है,
‘शिवराम’ जुनूं न हो तो सोचे हटकर कौन?
आपका मित्र
शिवराम सिंह काम्पिल्य फर्रुखाबाद
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ
चांद छुट्टी पर रहा होगा उस रात...
(आज मेरे एक प्रिय और अत्यंत ही करीबी मित्र प्रदीप का जन्म दिन है
................... उसके जन्मदिन पर एक कविता लिखने का मन किया जो आपके
सामने प्रस्तुत है ....." आपका मित्र शिवराम सिंह काम्पिल्य फर्रुखाबाद राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ) |
चांद छुट्टी पर रहा होगा उस रात...
तितर-बितर तारों के दम पर,
चमचम करता होगा रात का लश्कर,
चांद छुट्टी पर रहा होगा उस रात...
एक दो कमरों का घर रहा होगा,
एक दरवाज़ा जिसकी सांकल अटकती होगी,
अधखुले दरवाज़े के बाहर घूमते होंगे पिता
लंबे-लंबे क़दमों से....
हो सकता है पिता न भी हों,
गए हों किसी रोज़मर्रा के काम से
नौकरी करने....
छोड़ गए हों मां को किसी की देखरेख में...
दरवाज़ा फिर भी अधखुला ही होगा...
मां तड़पती होगी बिस्तर पर,
एक बुढ़िया बैठी होगी कलाइयां भींचे....
बाहर खड़ा आदमी चौंकता होगा,
मां की हर चीख पर...
यूं पैदा हुए हम,
जलते गोएठे की गंध में...
यूं खोली आंखे हमने
अमावस की गोद में...
नींद में होगी दीदी,
नींद में होगा भईया..
रतजगा कर रही होगी मां,
मेरे साथ.....चुपचाप।।
चमचम करती होगी रात।।।
नहीं छपा होगा,
मेरे जन्म का प्रमाण पत्र...
नहीं लिए होंगे नर्स ने सौ-दो सौ,
पिता जब अगली सुबह लौटे होंगे घर,
पसीने से तर-बतर,
मुस्कुराएं होंगे मां को देखकर,
मुझे देखा भी होगा कि नहीं,
पंडित के फेर में,
सतइसे के फेर में....
हमारे घर में नहीं है अलबम,
मेरे सतइसे का,
मुंहजुठी का,
या फिर दीदी के साथ पहले रक्षाबंधन का....
फोटो खिंचाने का सुख पता नहीं था मां-बाप को,
मां को जन्मतिथि भी नहीं मालूम अपनी,
मां को नहीं मालूम,
कि अमावस की इस रात में,
मैं चूम रहा हूं एक मां-जैसी लड़की को...
उसकी हथेली मेरे कंधे पर है,
उसने पहन रखे है,
अधखुली बांह वाले कपड़े...
दिखती है उसकी बांह,
केहुनी से कांख तक,
एक टैटू भी है,
जो गुदवाया था उसने दिल्ली हाट में,
एक सौ पचास रुपए में,
ठीक उसी जगह,
मेरी बांह पर भी,
बड़े हो गए हैं जन्म वाले टीके के निशान,
मुझे या मां को नहीं मालूम,
टीके के दाम...
(आज मेरे एक प्रिय और अत्यंत ही करीबी मित्र प्रदीप का जन्म दिन है ................... उसके जन्मदिन पर एक कविता लिखने का मन किया जो आपके सामने प्रस्तुत है ....."
आपका मित्र
शिवराम सिंह काम्पिल्य फर्रुखाबाद
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ)
Wednesday, 6 February 2013
- आप सभी मित्रों को रोज डे की हार्दिक शुभकामनायें .......शिवराम सिंह राठौर
1
~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~
With this rose, I m not only give you merely a rose,
but I give you my heart and soul.
I send to you all the love I have to give,
and anything else that would give me the
chance to touch your heart
but I give you my heart and soul.
I send to you all the love I have to give,
and anything else that would give me the
chance to touch your heart
Happy Rose Day My Sweet Heart
2
~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~
Rose Day SMS for loved one
All that is good
All that is true
Sweetness of life
Skies that are Blue
Are wished truly for you
All that is good
All that is true
Sweetness of life
Skies that are Blue
Are wished truly for you
3
~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~
Phool bankar muskarana zindagi,
muskarake gum bhulana zindagi,
jeet kar koi khush ho to kya hua,
haar kar khushiya manana bhi zindagi..
3
~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~
Mohabbat lafzon ki mohtaaz nahi hoti!
Jab tanhai me aapki yaad aati hai,
Hontho pe ek hi fariyad aati hai…
Khuda aapko har khushi de,
Kyonki aaj bhi hamari har khushi aapke baad aati hai..
Jab tanhai me aapki yaad aati hai,
Hontho pe ek hi fariyad aati hai…
Khuda aapko har khushi de,
Kyonki aaj bhi hamari har khushi aapke baad aati hai..
4
~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~
Every
night when I look at the moon, it reminds me of you, how you can see
the same moon. It makes me sometimes sad because I can see the moon, but I can’t see you. Happy Rose Day!
5
~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~ ~~~~
If I had a single flower for every time I think about you, I could walk forever in my garden.
As we grow older together, As we continue to change with age, There is one thing that will never change. . . I will always keep falling in love with you.
Monday, 4 February 2013
हर किसी की एक अलग कहानी............
हर किसी की एक अलग कहानी............
Har Kisi Ki Ek Alag Kahani
Sabko Yaha Apni Manzil Hai Pani
Raaste Kafi Mushkil Hai
Thokar Khana Yaha Har Kisi Ko Hai
Q In Raho Mein Hum Kisi Se Mil Jate Hai?
Kabhi Pyar Kabhi Dost Woh Q Kehlate Hai?
Khushi Unko Bole Bina Chain Nahi Milta
Gammo Ko Unse Bate Bina Aaram Nahi Milta
Kaisa Hota Hai Yeh Rishta
Jo Hal Pal Hamare Sath Rehta
Phir Bhi Jab Ek Mod Zindagi Ka Aata
Dosto Ko Piche Chod Ke, Pyar Ko Chahata
Mushkil Kyu Hoti Hai Zindagi Itni
Dosto K Sath Jiyo Jitni, Phir Bhi Kam Lagti Hai Q Zindagi Utni
Har Naya Rasta Phirse Ek Naya Dost Layega
Humari Khushiyon Aur Dukho Ka Raazdar Kehlayega
Phir Hoga Ek Mod Jaisa
Chor Jayega Koi Dost Aisa
Zindagi Ka Yeh Ajeeb Khel Hai
Kabhi Akele Toh Kabhi Dosto Ka Meil Hai
Phir Bhi In Rishton Se Hai Ye Zindagi Suhani
Na Hote Dost Toh Hai Yeh Kitni Virani
Zindagi Ka Safar Yuhi Jiya Nahi Jata
Apne Gammo Ko Akele Piya Nahi Jata
Isiliye Sahara Hai Un Fariston Ka
Khel Kehte Hai Hum Jo Naseebo Ka
Nahi Ho Sakta Bhagwan Har Jagah
Iski Hai Shyd Yeh Wajah
Bheja Hai Apne Bandoko Dost Banakar
Jo Rakhe Hame Sar Akhon Par
Isiliye Raaston Pe Yeh Rishte Mil Jate Hai
Kabhi Dost Toh Kabhi Pyar Yeh Kehlate Hai
Sabko Yaha Apni Manzil Hai Pani
Raaste Kafi Mushkil Hai
Thokar Khana Yaha Har Kisi Ko Hai
Q In Raho Mein Hum Kisi Se Mil Jate Hai?
Kabhi Pyar Kabhi Dost Woh Q Kehlate Hai?
Khushi Unko Bole Bina Chain Nahi Milta
Gammo Ko Unse Bate Bina Aaram Nahi Milta
Kaisa Hota Hai Yeh Rishta
Jo Hal Pal Hamare Sath Rehta
Phir Bhi Jab Ek Mod Zindagi Ka Aata
Dosto Ko Piche Chod Ke, Pyar Ko Chahata
Mushkil Kyu Hoti Hai Zindagi Itni
Dosto K Sath Jiyo Jitni, Phir Bhi Kam Lagti Hai Q Zindagi Utni
Har Naya Rasta Phirse Ek Naya Dost Layega
Humari Khushiyon Aur Dukho Ka Raazdar Kehlayega
Phir Hoga Ek Mod Jaisa
Chor Jayega Koi Dost Aisa
Zindagi Ka Yeh Ajeeb Khel Hai
Kabhi Akele Toh Kabhi Dosto Ka Meil Hai
Phir Bhi In Rishton Se Hai Ye Zindagi Suhani
Na Hote Dost Toh Hai Yeh Kitni Virani
Zindagi Ka Safar Yuhi Jiya Nahi Jata
Apne Gammo Ko Akele Piya Nahi Jata
Isiliye Sahara Hai Un Fariston Ka
Khel Kehte Hai Hum Jo Naseebo Ka
Nahi Ho Sakta Bhagwan Har Jagah
Iski Hai Shyd Yeh Wajah
Bheja Hai Apne Bandoko Dost Banakar
Jo Rakhe Hame Sar Akhon Par
Isiliye Raaston Pe Yeh Rishte Mil Jate Hai
Kabhi Dost Toh Kabhi Pyar Yeh Kehlate Hai
शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
शाखा :-- सूचना प्रोधोगिकी
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********
शाखा :-- सूचना प्रोधोगिकी
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********
आज दोस्ती पैर एक किताब लिखेंगे दोस्तों .......
Uljhan Gar Koi Aaye
To Mujhse Na Chupana
Sath Na De Jubaan To
To Mujhse Na Chupana
Sath Na De Jubaan To
Door ho jayun to zara intezar karna
Door Ho Jayun To Zara Intezar Karna
Apne Dil Ko Na Yun Bekarar Karna
Laut Kar Aayenge Hum Jahan Bhi Jayenge
Bas Humari Dosti Per Aitbar Karna
Laut Kar Aayenge Hum Jahan Bhi Jayenge
Bas Humari Dosti Per Aitbar Karna
Aakhon Se Batana
Har Kadam Par Sath Hain Hum Aapke
Apna Banaya Hai To Jaroor Aazmana…
Har Kadam Par Sath Hain Hum Aapke
Apna Banaya Hai To Jaroor Aazmana…
Dost wo nahi jo aap ke kaam
Dost Wo Nahi Jo Aap Ke Kaam Aaye
Dost Wo Hai Jo Aapki T-Shirt Maang Kar Le Jaye
Aur Kabhi Wapis Na Kare…
Dost Wo Bhi Nahi Jo Aapko Treat De
Dost Wo Hai Jo Aap Ke Ghar Aaye,
Aur Kahe, “Aaj Kya Pka Hai, Jo Bhi Hai Jaldi Se Le Aa…”
Dost Wo Nahi Jo Call Kar Ke Milne Aaye
Dost Wo Hai Jo Ghar Ke Saamne Message Kare, “Kaminey Bahar Aa…”
Dost Wo Nahi Jo Janaze Pe Aaye
Dost Wo Hai Jo Kabar Pe T-Shirt Le Aaye Aur Kahe,
“Le Nahi Chahiye Tera Ehsaan Chal Uth Aur Meri Dosti Wapis Kar…”
Dost Wo Hai Jo Aapki T-Shirt Maang Kar Le Jaye
Aur Kabhi Wapis Na Kare…
Dost Wo Bhi Nahi Jo Aapko Treat De
Dost Wo Hai Jo Aap Ke Ghar Aaye,
Aur Kahe, “Aaj Kya Pka Hai, Jo Bhi Hai Jaldi Se Le Aa…”
Dost Wo Nahi Jo Call Kar Ke Milne Aaye
Dost Wo Hai Jo Ghar Ke Saamne Message Kare, “Kaminey Bahar Aa…”
Dost Wo Nahi Jo Janaze Pe Aaye
Dost Wo Hai Jo Kabar Pe T-Shirt Le Aaye Aur Kahe,
“Le Nahi Chahiye Tera Ehsaan Chal Uth Aur Meri Dosti Wapis Kar…”
Aaj dosti per ek kitab likhenge doston
Aaj Dosti Per Ek Kitab Likhenge
Doston Ke Sath Gujaari Har Baat Likhenge
Jab Batana Ho Dost Kaise Hote Hain
Tumhe Soch Kar Har Baat Likhenge…
Doston Ke Sath Gujaari Har Baat Likhenge
Jab Batana Ho Dost Kaise Hote Hain
Tumhe Soch Kar Har Baat Likhenge…
शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
शाखा :-- सूचना प्रोधोगिकी
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********
शाखा :-- सूचना प्रोधोगिकी
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********
दोस्तों की दोस्ती यारों का प्यार लता है ..
दोस्तों की दोस्ती यारों का प्यार लता है ...
शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
शाखा :-- सूचना प्रोधोगिकी
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********
Doston Ki Dosti Yaaron Ka Pyar
Laata Hai Zindagi Mei Khusiyan Hazaar
Wo Saath Haun To Kya Hai Baat
Masti Aur Dhoom Ki Ho Suruaat
Aksar Hum Waqt Tanha Bitate Hain
Career Ke Liye Unhe Bhool Jaate Hain
Wahi Pal To Dosti Ka Ehsaas Dilaate Hain
Aanken Nam Aur Hoton Pe Hansi Saath Laate Hain
Waqt Dekhte Hi Dekhte Gujar Jata Hai
Kabhi Kabhi Hamein Unse Milata Hai
Milte Hai Wo To Hum Jee Bharkar Muskurate Hain
Lagate Hain Gale To Sab Kuch Bhool Jaate Hain
Yeh Zindagi Bhi Kabhi Bewafa Si Lagti Hai
Khushi Milti Hai Phir Bicharti Hai
Doston Ki Dosti Kuch Aisa Asar Karti Hai
Usme Hi To Yeh Zindagi Sanwarti Hai
Doston Ki Dosti Yaaron Ka Pyaar
Lata Hai Zindagi Mei Khusiyan Hazaar
Wo Saath Haun To Kya Hai Baat
Masti Aur Dhoom Ki Ho Suruaat…
Laata Hai Zindagi Mei Khusiyan Hazaar
Wo Saath Haun To Kya Hai Baat
Masti Aur Dhoom Ki Ho Suruaat
Aksar Hum Waqt Tanha Bitate Hain
Career Ke Liye Unhe Bhool Jaate Hain
Wahi Pal To Dosti Ka Ehsaas Dilaate Hain
Aanken Nam Aur Hoton Pe Hansi Saath Laate Hain
Waqt Dekhte Hi Dekhte Gujar Jata Hai
Kabhi Kabhi Hamein Unse Milata Hai
Milte Hai Wo To Hum Jee Bharkar Muskurate Hain
Lagate Hain Gale To Sab Kuch Bhool Jaate Hain
Yeh Zindagi Bhi Kabhi Bewafa Si Lagti Hai
Khushi Milti Hai Phir Bicharti Hai
Doston Ki Dosti Kuch Aisa Asar Karti Hai
Usme Hi To Yeh Zindagi Sanwarti Hai
Doston Ki Dosti Yaaron Ka Pyaar
Lata Hai Zindagi Mei Khusiyan Hazaar
Wo Saath Haun To Kya Hai Baat
Masti Aur Dhoom Ki Ho Suruaat…
शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
शाखा :-- सूचना प्रोधोगिकी
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********
Monday, 28 January 2013
दिल की आवाज़ .............
दिल की आवाज़
aaj ye dil keheta hai, tu ab laut chal
guzarti nahin hai, meri koi bhi pal
mujhko yahaan se le chal
aaj ye dil keheta hai, tu ab laut chal
guzarti nahin hai, meri koi bhi pal
mujhko yahaan se le chal
aaj ye dil keheta hai, tu ab laut chal
woh manzil yahaan nahin milegi
jise tujhe talash hai
woh manzar yahaan nahin dikhega
jo tere dil ke aas paas hai
milti nahin hai mujhe yahaan koi bhi hal
mujhko yahaan se le chal
aaj ye dil keheta hai, tu ab laut chal
jise tujhe talash hai
woh manzar yahaan nahin dikhega
jo tere dil ke aas paas hai
milti nahin hai mujhe yahaan koi bhi hal
mujhko yahaan se le chal
aaj ye dil keheta hai, tu ab laut chal
waise log yahaan nahin hai
jinko dhund raha hai tu
yahaan log waise nahin hai
jinse jud raha hai tu
na banegi yahaan mere sapno ka mahal
mujhko yahaan se le chal
aaj ye dil keheta hai, tu ab laut chal
jinko dhund raha hai tu
yahaan log waise nahin hai
jinse jud raha hai tu
na banegi yahaan mere sapno ka mahal
mujhko yahaan se le chal
aaj ye dil keheta hai, tu ab laut chal
शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
शाखा :-- सूचना प्रोधोगिकी
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********
बस मुझे मेरा प्यार चाहिए ........!!!!!!!!!!
बस मुझे मेरा प्यार चाहिए ........!!!!!!!!!!
Jo bani ho Mere lye
Jis ke lye mai Jee raha hoon
Jo kahe Hum saath hain Tere
Jise dekhne k liye Tarap raha hoon
Ek aisa hi Dildaar chahiye
Bus Mujhe Mera Pyar Chahiye
Aane se jis ke Phool bhi Sharma jaye
Chalne se jis ke Hawa bhi Tham jaye
Ho har Waqt rahe saath mai Mere
Chahe saari Duniya Mujh se Rooth jaye
Aisa hi kisi ka Aitbaar chahiye
Bus Mujhe Mera Pyar Chahiye
Jis ki ek Hansi k liye
Mar jane ko Dil kare
Jo kehde ek baar to
Phir Jeene ko Dil kare
Aisa hi Ek Humsafar chahiye
Bus Mujhe Mera Pyar Chahiye
Ek baar mili thi Mujhe woh
Par pata nahi kaha kho gayi
Ab agar mil jaye toh
use kahi jane na doon
Wohi khoya Yaar chahiye
Bus Mujhe Mera Pyar Chahiye
शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
शाखा :-- सूचना प्रोधोगिकी
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********
क्या करूं...????????????.
क्या करूं...????????????.
उनको करीब लाने की चाह में ,
सबसे दूर होते गए ,
वो करीब ना आये ,
सब दूर चले गए .
पास जाने की चाह में, उनके
सबसे दूर हो गए ,
सबसे अनजान बनते गए ,
वो हमे अनजान कहे गए .
हर ख़ुशी उनकी देखने के लिए ,
हर वक़्त दूर रहे उनके नज़रों से हम .
जान ना पाये वो हमे ,
भूल गयी हमे , दो पल क्या जो दूर हो गए हम .
कितनी कोसिशो के बाद मनाया ,
मिलने को खुदसे ,
उससे मिलन में भी बिछुड़ना था ,
उनको मुझसे .
हम तो बस उन्हें कुच्छ कहना चाहते ,
पर वो हमसे कुच्छ सुन्ना ना चाहते ,
ख्वाब में तो देर रात बाते कर लेता ,
सामने उनके में कुछ बूल ना पता .
कैसे करू में बयान लबो से ,
करता था में प्यार दिल से ,
काश समझ जाती प्यार को मेरे ,
न होना पड़ता मुझे दूर अपनों से
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शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
शाखा :-- सूचना प्रोधोगिकी
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********
शाखा :-- सूचना प्रोधोगिकी
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********
अपना बनाने का वादा करो .....
खुशबुओं की तरह मेरी हर सांस में
प्यार अपना बसाने का वादा करो
रंग जितने तुम्हारी मोहब्बत के है
मेरे दिल में सजाने का वादा करो
है तुम्हारी वफाओं पे मुझको यकीन
फिर भी दिल चाहता है मेरे दिल नशीं
यूँही मेरी तसल्ली की खातिर ज़रा
मुझको अपना बनाने का वादा करो
जब मोहब्बत का इकरार करते हो तुम
धडकनों में नया रंग भरते हो तुम
वादा कर चुके हो मगर आज फिर
मुझको अपना बनाने का वादा करो
सिर्फ लफ़्ज़ों से इकरार होता नहीं
इक जानिब से ही प्यार होता है
मई तुम्हे याद रखने की खाऊ कसम
तुम मुझको ना भुलाने का वादा करो …
प्यार अपना बसाने का वादा करो
रंग जितने तुम्हारी मोहब्बत के है
मेरे दिल में सजाने का वादा करो
है तुम्हारी वफाओं पे मुझको यकीन
फिर भी दिल चाहता है मेरे दिल नशीं
यूँही मेरी तसल्ली की खातिर ज़रा
मुझको अपना बनाने का वादा करो
जब मोहब्बत का इकरार करते हो तुम
धडकनों में नया रंग भरते हो तुम
वादा कर चुके हो मगर आज फिर
मुझको अपना बनाने का वादा करो
सिर्फ लफ़्ज़ों से इकरार होता नहीं
इक जानिब से ही प्यार होता है
मई तुम्हे याद रखने की खाऊ कसम
तुम मुझको ना भुलाने का वादा करो …
© शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
******के. एस . आर . इंटर कालेज कम्पिल फर्रुखाबाद ************
Yu To Chand bhi Bhatakta hai Rat Bhar
Me jo Bhatak gaya to Bat kya
Sari Duniya Roti hai Chup kar
Me jo thoda Ro liya to Bat Kya
Har Kisi Ko Talab hai Pyar Ki
Maine thoda Soch liya to Bat Kya
Roshni ki Chah to sab ko hai
Maine thoda Andhera mang liya to Bat kya
Zindagi k is Haseen Khwab me
Maine Use mang liya to Bat Kya
Har kisi ne Mehfil ko Chaha Yaha
Maine Tanhai ko Chaha to Bat kya
Yu to Chand bhi Bhatakta hai Rat bhar
Me jo Bhatak gaya to Bat kya
Me jo Bhatak gaya to Bat kya
Sari Duniya Roti hai Chup kar
Me jo thoda Ro liya to Bat Kya
Har Kisi Ko Talab hai Pyar Ki
Maine thoda Soch liya to Bat Kya
Roshni ki Chah to sab ko hai
Maine thoda Andhera mang liya to Bat kya
Zindagi k is Haseen Khwab me
Maine Use mang liya to Bat Kya
Har kisi ne Mehfil ko Chaha Yaha
Maine Tanhai ko Chaha to Bat kya
Yu to Chand bhi Bhatakta hai Rat bhar
Me jo Bhatak gaya to Bat kya
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शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
******के. एस . आर . इंटर कालेज कम्पिल फर्रुखाबाद ************
******के. एस . आर . इंटर कालेज कम्पिल फर्रुखाबाद ************
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तुम कहाँ हो ? ? ?
एक पुरानी कविता पुरानी टिप्पणियों के
साथ...
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तुम शायद भूल गए वो पल,
जब उन नन्हे हाथों से
मेरी ऊँगली पकड़कर तुमने चलना सीखा था,
अपने पहले लड़खड़ाते कदम मेरी तरफ बढ़ाये थे.....
तुम शायद भूल गए...
जब मैं तुम्हारे लिए घोडा बना करता था
तुम्हारी हर बेतुकी बातें सुना करता था,
परियों कि कहानियां सुनते सुनते
मेरी गोद में सर रख कर न जाने तुम कब सो जाते थे,
जब मेरे बाज़ार से आते ही
पापा कहकर मुझसे लिपट जाते थे,
अपने लिए ढेर सारे खिलोनों कि जिद किया करते थे.
तुम शायद भूल गए...
जब दिवाली के पटाखों से डरकर मेरी गोद में चढ़ जाया करते
थे,
जब मेरे कंधे पर सवारी करने को मुझे मनाते थे,
जब दिनभर हुई बातें बतलाया करते थे...
आज जब शायद तुम बड़े हो गए हो,
ज़िन्दगी कि दौड़ में कहीं खो गए हो,
ज़िन्दगी कि दौड़ में कहीं खो गए हो,
आज जब मैं अकेला हूँ,
वृद्ध हूँ, लाचार हूँ,
मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
लेकिन तुम नहीं हो शायद,
दिल आज भी घबराता है,
कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
तुम ठीक तो हो न ....
तुम ठीक तो हो न ....
***************शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद !..............
बस यूँ ही आज तुम्हारी याद आ गयी...
Wednesday 16 March 2011
बस यूँ ही आज तुम्हारी याद आ गयी...
जब कभी उन बीते लम्हों की अलमारी
खोलता हूँ तो बेतरतीबी से बिखरी हुयी यादें भरभरा के बाहर गिर पड़ती हैं ... न जाने
कितनी बार सोचा कि उन्हें करीने से सजा दूं लेकिन कभी जब बहुत बेचैन होता हूँ तो मन
में उठते हुए उबार किसी एक ख़ास लम्हें की तलाश में जैसे सब कुछ बिखेर देते
हैं...
तुम्हें वो पीपल का पेड़ याद है जहाँ
तुम हर सुबह अपनी स्कूल बस का इंतज़ार करती थी, और मैं किसी न किसी बहाने से वहां
अपनी सायकिल से गुज़रता था... तुम्हें बहुत दिनों तक वो महज एक इत्तफाक लगा था...
तुम्हें क्या पता ये इतनी मेहनत सिर्फ इसलिए थी कि इसी बहाने एक बार तुम मुझे
मुस्कुरा कर तो देखती थी, और कभी कभी तो मुझे रोक कर थोड़ी देर बात भी कर लेती थी..
वो ख़ुशी तो त्यौहार में अचानक से मिलने वाले बोनस से कम नहीं होती थी...
प्यार करना भी उतना आसान थोड़े न है, वो
देर रात तक सिर्फ इसलिए जागना क्यूंकि तुम्हारे कमरे की बत्ती जल रही होती थी, आखिर
कभी कभी खिड़की से तुम दिख ही जाती थी... ऐसा लगता था जैसे खिड़की के उसपार पूनम का
चाँद उतर आया है...
यूँ वजह-बेवजह तोहफा देने की आदत भी
तुम्हारी अजीब थी, पता तुम्हारी दी हुयी हर चीज आज भी संभाल कर रखी है... वो
बुकमार्क जो फ्रेंडशिप डे पर तुमने दिया था, आज भी मेरी किताबों के पन्ने से मुझे
झाँक लिया करता है... और वो घड़ी, कलाई पर आज भी उतने ही विश्वास से टिक-टिक कर रही
है, और तुम्हारे साथ बिताये हुए लम्हों की याद दिला जाती है...
जब मैं तुम्हें बिना बताये छुट्टियों
में पहली बार पटना से घर आया था, कैसे पागलों की तरह चीखी थी तुम, तुम्हारी आखों की
वो चमक मंदिर में जलते किसी दीये की तरह थी, जो जलने पर अपनी लौ में कम्पन कर किसी
नैसर्गिक ख़ुशी को व्यक्त करता है... उन खूबसूरत आखों में आंसू भी खूब देखे हैं
मैंने, तुम्हारे पापा की बरसी पर जब तुम्हारे आंसुओं ने मेरे कन्धों को भिगोया था,
मैं अपने आप को कितना बेबस महसूस कर रहा था... उस समय तुम्हारी एक मुस्कराहट के
बदले शायद सब कुछ दे सकता था मैं... उन आखों को चाहकर भी भुला नहीं पाया
हूँ..
एक अरसा हुआ उन आखों को देखे
हुए लेकिन इतना यकीन है कि उन आखों में आज भी वही चमक और वही मुस्कराहट तैरती होगी,
भले ही उसका कारण अब मैं नहीं हूँ....
शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद !..............
Saturday, 19 January 2013
Administrator
मां को कैसा लगता होगा?
जन्मा होगा जब कोई फूल
मां को कैसा लगता होगा?
बढ़ते हुए बच्चों को देख
मां को कैसा लगता होगा?
बच्चे हुए होंगे जब बड़े
मां को कैसा लगता होगा?
करके याद बातें पुरानी
मां को कैसा लगता होगा?
जा बसने में बच्चों से दूर
मां को कैसा लगता होगा?
मां को कैसा लगता होगा?
( My Best Best And Top Most Best Friend ****HARSH OMAR*****)
MY BEST FRIEND***PRADEEP KUMAR**AND ..Immortal Mritunjay Dubey.....
My Best Friend *****Niranjan Sahu *****the top most censor person of my Group
HARSH OMAR ****HUD HUD DAWANG DAWANG
Me And My Another Friends Group....Gourav , MD, Shivshankar Shukla (Vidhata)...
मां को कैसा लगता होगा? ..................................................................................................................
मां को कैसा लगता होगा?
जन्मा होगा जब कोई फूल
सारे दुःख भूली होगी
देख अपने लाल का मुंह ।
मां को कैसा लगता होगा?
बढ़ते हुए बच्चों को देख
हर सपने पूरी करने को
होगी तत्पर मिट जाने को।
मां को कैसा लगता होगा?
बच्चे हुए होंगे जब बड़े
और सफल हो जीवन में
नाम कमाएं होंगे ख़ूब ।
मां को कैसा लगता होगा?
बच्चे समझ कर उनको बोझ
मां को कैसा लगता होगा?
बच्चे समझ कर उनको बोझ
गिनने लगे निवाले रोज़
देते होंगे ताने रोज़।
मां को कैसा लगता होगा?
करके याद बातें पुरानी
देने को सारे सुख उनको
पहनी फटा और पी पानी।
मां को कैसा लगता होगा?
होगी जब जाने की बारी
मां को कैसा लगता होगा?
होगी जब जाने की बारी
चाहा होगा पी ले थोड़ा
बच्चों के हाथों से पानी।
मां को कैसा लगता होगा?
जा बसने में बच्चों से दूर
टकटकी बांधें देखती होगी
उसी प्यार से भरपूर।
मां को कैसा लगता होगा?
मां को कैसा लगता होगा?
शिवराम सिंह राठौर ...........................
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