गज़ल बेबसी की हम नई तस्वीर हैं , हम तूफानों में फंसी तकदीर हैं गुलशनों को फूंकते हैं नौजवां, मालियों के सूखते अब नीर हैं बन गया मैं एक दिल टूटा हुआ, लोग मुझको जोडते हर पीर हैं एक था घर कई घरों में बंट गया, बीबियाँ घर की गज़ब शमशीर हैं रांझे को चीलें उठा के ले गईं , काफिरों संग घूमती अब हीर हैं अब कहाँ मिलते फंसाने प्रीत के, हर तरफ अब फत्ते ईर बीर हैं |
आपका मित्र
शिवराम सिंह काम्पिल्य फर्रुखाबाद
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ
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