Saturday, 19 January 2013

Administrator


प्रिय मित्रो मैं ...शिवराम सिंह राठौर ....राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ,  इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी ..अंतिम वर्ष का छात्र हूँ ...और ये ब्लॉग मैं आप सब के नम् कर रहा हूँ ..और ये मेरे कुछ खास और बेस्ट फ्रेंड्स (मिर्त्रो ) का  संछिप्त परिचय मैं आपको दे रहा हु .....
 
 
 
गम के सागर में कभी डूब न जाना ....
कभी मंजिल न पाओ तो टूट न जाना ...
जिंदगी में अगर महसूस हो कमी दोस्त की ..
अभी हम जिन्दा है ये भूल न जाना 
 
 
 
 
Me And My Friends Group
 
 
 (ADMINISTRATOR)
                                          
                                                        Me ( Shivram singh Rathour)




(  My Best Best And Top Most Best Friend ****HARSH  OMAR*****)

MY BEST FRIEND***PRADEEP KUMAR**AND ..Immortal Mritunjay Dubey.....
 
My Best Friend *****Niranjan Sahu *****the top most censor person of my Group 
 
HARSH OMAR ****HUD HUD DAWANG DAWANG
 
 

Me And My Another Friends Group....Gourav , MD, Shivshankar Shukla (Vidhata)...
 
 मां को कैसा लगता होगा? ..................................................................................................................

मां को कैसा लगता होगा?
जन्मा होगा जब कोई फूल
सारे दुःख भूली होगी
देख अपने लाल का मुंह ।

मां को कैसा लगता होगा?
बढ़ते हुए बच्चों को देख
हर सपने पूरी करने को
होगी तत्पर मिट जाने को।

मां को कैसा लगता होगा?
बच्चे हुए होंगे जब बड़े
और सफल हो जीवन में
नाम कमाएं होंगे ख़ूब ।

मां को कैसा लगता होगा?
बच्चे समझ कर उनको बोझ
गिनने लगे निवाले रोज़
देते होंगे ताने रोज़।

मां को कैसा लगता होगा?
करके याद बातें पुरानी
देने को सारे सुख उनको
पहनी फटा और पी पानी।

मां को कैसा लगता होगा?
होगी जब जाने की बारी
चाहा होगा पी ले थोड़ा
बच्चों के हाथों से पानी।

मां को कैसा लगता होगा?
जा बसने में बच्चों से दूर
टकटकी बांधें देखती होगी
उसी प्यार से भरपूर।

मां को कैसा लगता होगा?
मां को कैसा लगता होगा?
 
 
 
शिवराम सिंह राठौर ...........................



1 comment:

  1. Wednesday 16 March 2011बस यूँ ही आज तुम्हारी याद आ गयी...
    जब कभी उन बीते लम्हों की अलमारी खोलता हूँ तो बेतरतीबी से बिखरी हुयी यादें भरभरा के बाहर गिर पड़ती हैं ... न जाने कितनी बार सोचा कि उन्हें करीने से सजा दूं लेकिन कभी जब बहुत बेचैन होता हूँ तो मन में उठते हुए उबार किसी एक ख़ास लम्हें की तलाश में जैसे सब कुछ बिखेर देते हैं...
    तुम्हें वो पीपल का पेड़ याद है जहाँ तुम हर सुबह अपनी स्कूल बस का इंतज़ार करती थी, और मैं किसी न किसी बहाने से वहां अपनी सायकिल से गुज़रता था... तुम्हें बहुत दिनों तक वो महज एक इत्तफाक लगा था... तुम्हें क्या पता ये इतनी मेहनत सिर्फ इसलिए थी कि इसी बहाने एक बार तुम मुझे मुस्कुरा कर तो देखती थी, और कभी कभी तो मुझे रोक कर थोड़ी देर बात भी कर लेती थी.. वो ख़ुशी तो त्यौहार में अचानक से मिलने वाले बोनस से कम नहीं होती थी...
    प्यार करना भी उतना आसान थोड़े न है, वो देर रात तक सिर्फ इसलिए जागना क्यूंकि तुम्हारे कमरे की बत्ती जल रही होती थी, आखिर कभी कभी खिड़की से तुम दिख ही जाती थी... ऐसा लगता था जैसे खिड़की के उसपार पूनम का चाँद उतर आया है...
    यूँ वजह-बेवजह तोहफा देने की आदत भी तुम्हारी अजीब थी, पता तुम्हारी दी हुयी हर चीज आज भी संभाल कर रखी है... वो बुकमार्क जो फ्रेंडशिप डे पर तुमने दिया था, आज भी मेरी किताबों के पन्ने से मुझे झाँक लिया करता है... और वो घड़ी, कलाई पर आज भी उतने ही विश्वास से टिक-टिक कर रही है, और तुम्हारे साथ बिताये हुए लम्हों की याद दिला जाती है...
    जब मैं तुम्हें बिना बताये छुट्टियों में पहली बार पटना से घर आया था, कैसे पागलों की तरह चीखी थी तुम, तुम्हारी आखों की वो चमक मंदिर में जलते किसी दीये की तरह थी, जो जलने पर अपनी लौ में कम्पन कर किसी नैसर्गिक ख़ुशी को व्यक्त करता है... उन खूबसूरत आखों में आंसू भी खूब देखे हैं मैंने, तुम्हारे पापा की बरसी पर जब तुम्हारे आंसुओं ने मेरे कन्धों को भिगोया था, मैं अपने आप को कितना बेबस महसूस कर रहा था... उस समय तुम्हारी एक मुस्कराहट के बदले शायद सब कुछ दे सकता था मैं... उन आखों को चाहकर भी भुला नहीं पाया हूँ..
    एक अरसा हुआ उन आखों को देखे हुए लेकिन इतना यकीन है कि उन आखों में आज भी वही चमक और वही मुस्कराहट तैरती होगी, भले ही उसका कारण अब मैं नहीं हूँ....

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