मेरा अपना ही क्रंदन है और अकेला मैं हूँ
मन का गहरा खालीपन है और अकेला मैं हूँ
जैसे कोई निर्जन वन है और अकेला मैं हूँ
जिसको सुनकर रातों को मैं अक्सर जाग गया हूँ
मेरा अपना ही क्रंदन है और अकेला मैं हूँ
मेरे घर के आस पास ही रहना चाँद सितारों
मेरी नींदों से अनबन है और अकेला मैं हूँ
पक्की करके रक्खूं मैं मन की कच्ची दीवारें
मेरी आँखों में सावन है और अकेला मैं हूँ
कुछ आधी पूरी कवितायें कुछ यादें कुछ सपने
मेरे घर में कितना धन है और अकेला मैं हूँ
जीवन के कितने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलें हैं
समय बचा अब कितना कम है और अकेला मैं हूँ
कभी कभी लगता है कोई करे प्यार की बातें
'शिवराम ' बड़ा नीरस जीवन है और अकेला मैं हूँ
आपका मित्र
शिवराम सिंह काम्पिल्य फर्रुखाबाद
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ
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