Monday, 28 January 2013

दिल की आवाज़ .............


दिल  की  आवाज़
aaj ye dil keheta hai, tu ab laut chal
guzarti nahin hai, meri koi bhi pal
mujhko yahaan se le chal
aaj ye dil keheta hai, tu ab laut chal
woh manzil yahaan nahin milegi
jise tujhe talash hai
woh manzar yahaan nahin dikhega
jo tere dil ke aas paas hai
milti nahin hai mujhe yahaan koi bhi hal
mujhko yahaan se le chal
aaj ye dil keheta hai, tu ab laut chal
waise log yahaan nahin hai
jinko dhund raha hai tu
yahaan log waise nahin hai
jinse jud raha hai tu
na banegi yahaan mere sapno ka mahal
mujhko yahaan se le chal
aaj ye dil keheta hai, tu ab laut chal

शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
शाखा :--   सूचना प्रोधोगिकी 
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********

बस मुझे मेरा प्यार चाहिए ........!!!!!!!!!!



बस  मुझे  मेरा  प्यार  चाहिए ........!!!!!!!!!!

Jo bani ho Mere lye
Jis ke lye mai Jee raha hoon
Jo kahe Hum saath hain Tere
Jise dekhne k liye Tarap raha hoon
Ek aisa hi Dildaar chahiye
Bus Mujhe Mera Pyar Chahiye
Aane se jis ke Phool bhi Sharma jaye
Chalne se jis ke Hawa bhi Tham jaye
Ho har Waqt rahe saath mai Mere
Chahe saari Duniya Mujh se Rooth jaye
Aisa hi kisi ka Aitbaar chahiye
Bus Mujhe Mera Pyar Chahiye
Jis ki ek Hansi k liye
Mar jane ko Dil kare
Jo kehde ek baar to
Phir Jeene ko Dil kare
Aisa hi Ek Humsafar chahiye
Bus Mujhe Mera Pyar Chahiye
Ek baar mili thi Mujhe woh
Par pata nahi kaha kho gayi
Ab agar mil jaye toh
use kahi jane na doon
Wohi khoya Yaar chahiye
Bus Mujhe Mera Pyar Chahiye

शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
शाखा :--   सूचना प्रोधोगिकी 
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********

क्या करूं...????????????.



क्या करूं...????????????.

उनको  करीब  लाने  की    चाह  में ,
सबसे  दूर  होते  गए ,
वो  करीब  ना  आये ,
सब  दूर  चले  गए .
पास  जाने  की  चाह  में, उनके
सबसे  दूर हो  गए ,
सबसे  अनजान  बनते  गए ,
वो  हमे  अनजान  कहे  गए .
हर  ख़ुशी  उनकी  देखने  के  लिए ,
हर वक़्त  दूर  रहे  उनके  नज़रों  से  हम .
जान  ना  पाये वो  हमे ,
भूल  गयी  हमे , दो  पल  क्या  जो  दूर  हो  गए  हम .
कितनी  कोसिशो  के  बाद  मनाया ,
मिलने  को  खुदसे ,
उससे  मिलन  में  भी  बिछुड़ना था ,
उनको  मुझसे .
हम  तो  बस  उन्हें  कुच्छ  कहना  चाहते ,
पर   वो  हमसे  कुच्छ सुन्ना  ना  चाहते ,
ख्वाब  में  तो  देर  रात  बाते  कर  लेता ,
सामने  उनके  में  कुछ  बूल  ना  पता .
कैसे  करू  में  बयान  लबो  से ,
करता  था  में  प्यार  दिल  से ,
काश समझ  जाती  प्यार  को  मेरे ,
न  होना  पड़ता  मुझे  दूर  अपनों  से 
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शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
शाखा :--   सूचना प्रोधोगिकी 
क्लास :-- अंतिम वर्ष २०१२-२०१३
राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ *********  

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अपना बनाने का वादा करो .....

खुशबुओं   की  तरह  मेरी  हर  सांस  में
प्यार  अपना  बसाने   का  वादा  करो
रंग  जितने  तुम्हारी  मोहब्बत  के  है
मेरे  दिल  में  सजाने  का  वादा  करो
है  तुम्हारी  वफाओं  पे  मुझको  यकीन
फिर  भी  दिल  चाहता  है  मेरे  दिल  नशीं
यूँही  मेरी  तसल्ली  की  खातिर  ज़रा
मुझको  अपना  बनाने  का  वादा  करो
जब  मोहब्बत  का  इकरार करते  हो  तुम
धडकनों  में  नया  रंग  भरते  हो  तुम
वादा   कर  चुके  हो  मगर  आज  फिर
मुझको  अपना  बनाने  का  वादा  करो
सिर्फ  लफ़्ज़ों  से  इकरार  होता  नहीं
इक  जानिब  से  ही  प्यार  होता  है
मई  तुम्हे  याद  रखने  की  खाऊ   कसम
तुम  मुझको  ना  भुलाने   का  वादा  करो …
© शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
******के. एस . आर . इंटर कालेज कम्पिल फर्रुखाबाद ************


Yu To Chand bhi Bhatakta hai Rat Bhar
Me jo Bhatak gaya to Bat kya
Sari Duniya Roti hai Chup kar
Me jo thoda Ro liya to Bat Kya
Har Kisi Ko Talab hai Pyar Ki
Maine thoda Soch liya to Bat Kya
Roshni ki Chah to sab ko hai
Maine thoda Andhera mang liya to Bat kya
Zindagi k is Haseen Khwab me
Maine Use mang liya to Bat Kya
Har kisi ne Mehfil ko Chaha Yaha
Maine Tanhai ko Chaha to Bat kya
Yu to Chand bhi Bhatakta hai Rat bhar
Me jo Bhatak gaya to Bat kya
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शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद
******के. एस . आर . इंटर कालेज कम्पिल फर्रुखाबाद ************
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तुम कहाँ हो ? ? ?



एक पुरानी कविता पुरानी टिप्पणियों के साथ...
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तुम शायद भूल गए वो पल,
जब उन नन्हे हाथों से
मेरी ऊँगली पकड़कर तुमने चलना सीखा था,
अपने पहले लड़खड़ाते कदम मेरी तरफ बढ़ाये थे.....
तुम शायद भूल गए...
जब मैं तुम्हारे लिए घोडा बना करता था
तुम्हारी हर बेतुकी बातें सुना करता था,
परियों कि कहानियां सुनते सुनते
मेरी गोद में सर रख कर न जाने तुम कब सो जाते थे,
जब मेरे बाज़ार से आते ही
पापा कहकर मुझसे लिपट जाते थे,
अपने लिए ढेर सारे खिलोनों कि जिद किया करते थे.
तुम शायद भूल गए...
जब दिवाली के पटाखों से डरकर मेरी गोद में चढ़ जाया करते थे,
जब मेरे कंधे पर सवारी करने को मुझे मनाते थे,
जब दिनभर हुई बातें बतलाया करते थे...
आज जब शायद तुम बड़े हो गए हो,
ज़िन्दगी कि दौड़ में कहीं खो गए हो,
आज जब मैं अकेला हूँ,
वृद्ध हूँ, लाचार हूँ,
मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
लेकिन तुम नहीं हो शायद,
दिल आज भी घबराता है,
कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
तुम ठीक तो हो न ....
***************शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद !..............

बस यूँ ही आज तुम्हारी याद आ गयी...

Wednesday 16 March 2011

बस यूँ ही आज तुम्हारी याद आ गयी...

           जब कभी उन बीते लम्हों की अलमारी खोलता हूँ तो बेतरतीबी से बिखरी हुयी यादें भरभरा के बाहर गिर पड़ती हैं ... न जाने कितनी बार सोचा कि उन्हें करीने से सजा दूं लेकिन कभी जब बहुत बेचैन होता हूँ तो मन में उठते हुए उबार किसी एक ख़ास लम्हें की तलाश में जैसे सब कुछ बिखेर देते हैं...
           तुम्हें वो पीपल का पेड़ याद है जहाँ तुम हर सुबह अपनी स्कूल बस का इंतज़ार करती थी, और मैं किसी न किसी बहाने से वहां अपनी सायकिल से गुज़रता था... तुम्हें बहुत दिनों तक वो महज एक इत्तफाक लगा था... तुम्हें क्या पता ये इतनी मेहनत सिर्फ इसलिए थी कि इसी बहाने एक बार तुम मुझे मुस्कुरा कर तो देखती थी, और कभी कभी तो मुझे रोक कर थोड़ी देर बात भी कर लेती थी.. वो ख़ुशी तो त्यौहार में अचानक से मिलने वाले बोनस से कम नहीं होती थी...
         प्यार करना भी उतना आसान थोड़े न है, वो देर रात तक सिर्फ इसलिए जागना क्यूंकि तुम्हारे कमरे की बत्ती जल रही होती थी, आखिर कभी कभी खिड़की से तुम दिख ही जाती थी... ऐसा लगता था जैसे खिड़की के उसपार पूनम का चाँद उतर आया है...
           यूँ वजह-बेवजह तोहफा देने की आदत भी तुम्हारी अजीब थी, पता तुम्हारी दी हुयी हर चीज आज भी संभाल कर रखी है...  वो बुकमार्क जो फ्रेंडशिप डे पर तुमने दिया था, आज भी मेरी किताबों के पन्ने से मुझे झाँक लिया करता है... और वो घड़ी, कलाई पर आज भी उतने ही विश्वास से टिक-टिक कर रही है, और तुम्हारे साथ बिताये हुए लम्हों की याद दिला जाती है...
         जब मैं तुम्हें बिना बताये छुट्टियों में पहली बार पटना से घर आया था, कैसे पागलों की तरह चीखी थी तुम, तुम्हारी आखों की वो चमक मंदिर में जलते किसी दीये की तरह थी, जो जलने पर अपनी लौ में कम्पन कर किसी नैसर्गिक ख़ुशी को व्यक्त करता है... उन खूबसूरत आखों में आंसू भी खूब देखे हैं मैंने, तुम्हारे पापा की बरसी पर जब तुम्हारे आंसुओं ने मेरे कन्धों को भिगोया था, मैं अपने आप को कितना बेबस महसूस कर रहा था... उस समय तुम्हारी एक मुस्कराहट के बदले शायद सब कुछ दे सकता था मैं...  उन आखों को चाहकर भी भुला नहीं पाया हूँ..
                    एक अरसा हुआ उन आखों को देखे हुए लेकिन इतना यकीन है कि उन आखों में आज भी वही चमक और वही मुस्कराहट तैरती होगी, भले ही उसका कारण अब मैं नहीं हूँ....
                                                                                                                शिवराम सिंह राठौर काम्पिल्य फर्रुखाबाद !..............

Saturday, 19 January 2013

Administrator


प्रिय मित्रो मैं ...शिवराम सिंह राठौर ....राजकीय पॉलिटेक्निक लखनऊ,  इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी ..अंतिम वर्ष का छात्र हूँ ...और ये ब्लॉग मैं आप सब के नम् कर रहा हूँ ..और ये मेरे कुछ खास और बेस्ट फ्रेंड्स (मिर्त्रो ) का  संछिप्त परिचय मैं आपको दे रहा हु .....
 
 
 
गम के सागर में कभी डूब न जाना ....
कभी मंजिल न पाओ तो टूट न जाना ...
जिंदगी में अगर महसूस हो कमी दोस्त की ..
अभी हम जिन्दा है ये भूल न जाना 
 
 
 
 
Me And My Friends Group
 
 
 (ADMINISTRATOR)
                                          
                                                        Me ( Shivram singh Rathour)




(  My Best Best And Top Most Best Friend ****HARSH  OMAR*****)

MY BEST FRIEND***PRADEEP KUMAR**AND ..Immortal Mritunjay Dubey.....
 
My Best Friend *****Niranjan Sahu *****the top most censor person of my Group 
 
HARSH OMAR ****HUD HUD DAWANG DAWANG
 
 

Me And My Another Friends Group....Gourav , MD, Shivshankar Shukla (Vidhata)...
 
 मां को कैसा लगता होगा? ..................................................................................................................

मां को कैसा लगता होगा?
जन्मा होगा जब कोई फूल
सारे दुःख भूली होगी
देख अपने लाल का मुंह ।

मां को कैसा लगता होगा?
बढ़ते हुए बच्चों को देख
हर सपने पूरी करने को
होगी तत्पर मिट जाने को।

मां को कैसा लगता होगा?
बच्चे हुए होंगे जब बड़े
और सफल हो जीवन में
नाम कमाएं होंगे ख़ूब ।

मां को कैसा लगता होगा?
बच्चे समझ कर उनको बोझ
गिनने लगे निवाले रोज़
देते होंगे ताने रोज़।

मां को कैसा लगता होगा?
करके याद बातें पुरानी
देने को सारे सुख उनको
पहनी फटा और पी पानी।

मां को कैसा लगता होगा?
होगी जब जाने की बारी
चाहा होगा पी ले थोड़ा
बच्चों के हाथों से पानी।

मां को कैसा लगता होगा?
जा बसने में बच्चों से दूर
टकटकी बांधें देखती होगी
उसी प्यार से भरपूर।

मां को कैसा लगता होगा?
मां को कैसा लगता होगा?
 
 
 
शिवराम सिंह राठौर ...........................